रायपुर। भारत सरकार ने सितंबर 2018 में चालीस बायसन बारनवापारा अभ्यारण से गुरु घासीदास नेशनल पार्क ले जाने की अनुमति छत्तीसगढ़ वन विभाग को दी थी। शर्त यह थी कि ट्रांसलोकेशन की प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर, जो बायसन की सुरक्षा को खतरे में डालती है, तो मंत्रालय दी गई अनुमति निरस्त कर सकता है।
आदेश के 6 साल बाद शुरू की स्थानांतरण की प्रक्रिया..!
छ: साल बाद 25 जनवरी 2025 को अचानक वन विभाग की नींद खुली और उसने एक मादा सब एडल्ट (उप-वयस्क) को बारनवापारा अभ्यारण में बेहोश करके पकड़ा। दिन में दो बजे उस अकेली को बारनवापारा से ट्रक में रवाना किया। बिना विश्राम के ट्रक गुरु घसीदास नेशनल पार्क रात को दो बजे कड़ाके की ठंड में पहुंचा, वहां सब एडल्ट मादा बायसन को बाड़े में उतारा गया। उतारने के 25 मिनट बाद सब एडल्ट मादा बायसन अचानक गिरी और मर गई। इसे लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है। वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी इसे बायसन की हत्या बता रहे हैं। उन्होंने भारत सरकार को पत्र लिख कर ट्रांसलोकेशन की अनुमति निरस्त करने की मांग की है।
क्यों विवाद में है मौत, और जिम्मेदार कौन?
बाइसन सामाजिक वन्यजीव हैं जो झुंड में रहते हैं, जिनका नेतृत्व आमतौर पर एक प्रमुख मादा करती है। वे सामाजिक रूप से एक-दूसरे से बहुत करीब से जुड़े रहते हैं, उप-वयस्क बच्चे अपनी माताओं और झुंड के संरक्षण और मार्गदर्शन में शिकारियों से बचने सहित आवश्यक उत्तरजीविता कौशल सीखते हैं। यह जानने के बावजूद, वन विभाग ने पहले एक उप-वयस्क को पकड़ना चुना। उप-वयस्क मादा बाइसन अगर इस मौत से बच भी जाती, तो भी वह गुरुघासीदास नेशनल पार्क में अकेले बिना मां और झुंड के असीम आघात में रहती क्योंकि बाद में उसकी मां को पकड़ना और मां को उसके पास स्थानांतरित करना संभव नहीं था।
विषम परिस्थितियों में किया गया स्थानांतरित
बाइसन जैसे सामाजिक वन्यजीवों को स्थानांतरित करते समय, उनके सामाजिक बंधनों पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाता है। आघात को कम करने और सर्वाइवल सुनिश्चित करने के लिए, पूरे झुंड को स्थानांतरित करने की आम तौर पर सिफारिश की जाती है। फिर भी एक उप-वयस्क मादा बाइसन को अकेले स्थानांतरित करने के लिए वन विभाग ने चुना।
सर्दियों के दौरान, बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य और गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान (GGNP) के बीच तापमान का अंतर काफी अधिक होता है, जिसमें GGNP में काफी ठंडा होता है। दुर्भाग्यशाली उप-वयस्क मादा बाइसन GGNP में रात लगभग 2 बजे पहुंची, तब बोमा साइट पर तापमान लगभग 6-7 डिग्री सेल्सियस था। ऐसे में अपनी मां और झुंड से अलग होने का आघात अचानक ठंड के संपर्क में आने से और बढ़ने की संभावनाओं से नकारा नहीं जा सकता जिससे उसकी मौत संभवतः हार्ट अटैक से हो गई। वन विभाग के अधिकारियों और पशु चिकित्सकों ने जानबूझकर इन तथ्यों को अनदेखा किया, जिसमें यह सच्चाई भी शामिल है कि मां से अलग होने का आघात और अचानक ठंडे तापमान के संपर्क में आना, विशेष रूप से उप-वयस्क बाइसन के जीवन के लिए खतरा हो सकता है।
क्या अधिकारियों और पशु चिकित्सको में मत भिन्नता थी?
अनुसूची-I की उप-वयस्क मादा बाइसन की मौत को लेकर वन विभाग ने कोई विज्ञप्ति जारी नहीं की है। जानकारी के अनुसार बाइसन के एक दल से कम से कम दो से तीन बाइसन ले जाना था। ऐसे में पशु चिकित्सकों ने सिर्फ एक ही बाइसन को ही क्यों पकड़ा? चर्चा है कि उप-वयस्क मादा बाइसन को अकेले GGNP ले जाने का विरोध चिकित्सकों ने किया था परन्तु अधिकारी नहीं माने और उसे अकेले ले जाने का दबाव बनाया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि पशु चिकित्सक, विभागीय अधिकारियों की जिद के सामने क्यों झुक गए, वे तो एक्सपर्ट थे? बायसन के भले के लिए उसे अकेले ले जाने से मना क्यों नहीं किया?
विशेष संरक्षित वन्य प्राणी है बायसन
भारत सरकार को पत्र लिखने वाले रायपुर के नितिन सिंघवी ने बताया कि IUCN की रेड लिस्ट में सूचीबद्ध और भारत में कानूनी रूप से संरक्षित अनुसूची-I बाइसन की मौत छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा की गई क्रूर हत्या से कम नहीं है। छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने अपनी अक्षमता और लापरवाही प्रमाणित की है। बारनवापारा अभयारण्य में बाइसन इतनी बड़ी संख्या में नहीं है कि उनको लेकर मानव-वन्यजीव द्वन्द हो रहा हो, जो कि अभी तक नहीं देखा गया है, ऐसे में वहां से बाइसन GGNP भेजे जाने पर पुन: विचार किया जाना चाहिए और जब GGNP का मैनेजमेंट टाइगर रिजर्व के मानकों अनुरूप हो जाये, स्टाफ मॉनिटरिंग के लिए सक्षम हो जाए, बाघों का और अन्य वन्यजीवों का शिकार रुक जाए, तब ही विचार किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि GGNP अब गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व भी हो गया है।