बालोद। संसार का सबसे समझदार प्राणी मनुष्य ,जिसे हर चीज की उपयोगिता मालूम है वो ये कैसे भूल जाता है कि वाणी का उपयोग कब,कहाँ और कैसे किया जाना चाहिए। संत ऋषभ सागर ने अपने प्रवचन श्रृंखला "हम स्वर्ग धरा पर लाएंगे "को आगे बढ़ाते हुए आज" वाणी "पर अपना उदबोधन दिए।
उन्होंने अपना उद्बोधन एक गीत के माध्यम से जिसके भाव थे वाणी ऐसी हो कि जिसमे अमृत बरसे,फिर सेमिलने को जिसे अंतर्मन तरसे। वाणी या शब्द की ताकत इतनी होती है कि वो जख्म भी दे सकता है और मलहम का काम भी कर सकता है,अशान्ति का कारण बन सकता है तो शान्ति भी स्थापित की जा सकती है।इसलिए बोलने से पहले सोचें। किसी व्यक्ति में बहुत सी अच्छाइयां हो किन्तु वाणी में कटुता हो तो उसकी सारी खूबियां ढंक जाती है। मधुर वचन सबको अच्छा लगता है ।अपने आनंद के लिए किसी का उपहास उड़ाना ,बदनाम करना, एक तरह की प्रताड़ना है।उन्होंने कहा कि वैचारिक पतन की पहली सीढ़ी उपहास है।आज के समय मे देखा जा रहा कि लोगों की संवेदनायें कम होती जा रही है जो कि मानवीय गुण है।मशीनों में संवेदनायें नही होती, आत्मावलोकन करें कहीं हम भी तो वैसे नही।शब्द जोड़ने और तोड़ने दोनो कार्य करती है ।दूरियाँ बढ़ने का कारण शब्द ही होते हैं।संवेदनशील बनें,शब्द चोट न पंहुचाये इन बातों को आत्मसात करें।अपनी कोई गलत आदत हो तो उनमें सुधार लाएं,सुधरने की कोई उम्र नही होती, जब जागे तब सबेरा संभवनाथ जैन मंदिर में 68 दिवसीय इक्तिसा जाप निरंतर चल रहा है।